अशोक महान् का जीवन परिचय

Monday 8 January 2018

सिकन्दर महान का जीवन परिचय.

सिकंदर महान: (20 जुलाई 376 ईसापूर्व से 11 जून 323 ईसा पूर्व) मकदूनियाँ, (मेसेडोनिया) का ग्रीक  प्रशासक था। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में वह सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। 20 वर्ष की आयु में सिकन्दर (Sikandar) मेसिडोनिया का राजा बना और अपने पिता की एशिया माईनर को जितने की इच्छा पूर्ण करने के लिए विशाल सेना और सर्वोत्कृष्ट सैन्य- उपकरण लेकर निकल पड़ा। बचपन से ही उसने “विश्व-विजेता” बनने का सपना देख रखा था। अपनी मृत्यु तक वह उस तमाम भूमि को जीत चुका था जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी। इसीलिए उसे विश्वविजेता भी कहा जाता है। सिकंदर अपने कार्यकाल में इरान, सीरिया, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया और भारत में पंजाब तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी।अनेक शानदार युद्ध अभियानों के बीच उसमे एशिया माइनर को जीतकर सीरिया को पराजित किया और मिस्र तक जा पहुंचा। जहाँ उसने अलेक्जांड्रिया नाम का एक नया नगर बसाया। वहां उसने एक विश्वविद्यालय की भी स्थापना की।

अगले वर्ष सिकन्दर मेसोपोटामिया होता हुआ फ़ारस (ईरान) पहुंचा और वहां के राजा डेरियस तृतीय को अरबेला के युद्ध में हरा कर वह स्वयं वहां का राजा बन गया। जनता का ह्रदय जीतने के लिए उसने फारसी राजकुमारी रुखसाना से विवाह भी कर लिया।
कुछ समय बाद सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया और पंजाब में सिन्धु नदी के तट तक जा पहुंचा। उसने भारत का सीमांत प्रदेश जित लिया था। परन्तु भारतीय राजा पुरु (पोरस) ने उसका बड़े साहस और शौर्य से सामना किया तथा आगे नहीं बढ़ने दिया। तभी सिकन्दर को फ़ारस के विद्रोह का समाचार मिला और वह उसे दबाने के लिए वापस चल दिया।
वह 323 ई.पू. में बेबीलोन पहुंचा और वहां पर उसे भीषण ज्वर ने जकड़ लिया। उस रोग का कोई इलाज नहीं था। अत: 33 वर्ष की आयु में वहीँ सिकन्दर की मृत्यु हो गई। केवल 10 वर्ष की अवधि में इस अपूर्व योध्दा ने अपने छोटे से राज्य का विस्तार कर एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था। जिसमें यूनान और भारत के मध्य का सारा भूभाग सम्मिलित था।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त क्षेत्र उस समय फ़ारसी साम्राज्य के अंग थे और फ़ारसी साम्राज्य सिकन्दर के अपने साम्राज्य से कोई 40 गुना बड़ा था। फारसी में उसे एस्कंदर-ए-मक्दुनी (मॅसेडोनिया का अलेक्ज़ेंडर) औऱ हिंदी में सिकंदर महान कहा जाता है।

पूरा नाम      – एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन
जन्म          – July 356 BC.    
जन्मस्थान  – Peela
पिता           – फिलीप
माता           – ओलंपिया
विवाह         – रुखसाना के साथ

सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने सौतेले व चचेरे भाइयों को कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिंहासन पर बैठा था। अपनी महत्वकन्क्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला। अपने आसपास के विद्रोहियों का दमन करके उसने इरान पर आक्रमण किया,इरान को जीतने के बाद गोर्दियास को जीता । गोर्दियास को जीतने के बाद टायर को नष्ट कर डाला। बेबीलोन को जीतकर पूरे राज्य में आग लगवा दी। बाद में अफगानिस्तान के क्षेत्र को रोंद्ता हुआ सिन्धु नदी तक चढ़ आया।
सिकंदर को अपनी जीतों से घमंड होने लगा था । वह अपने को इश्वर का अवतार मानने लगा,तथा अपने को पूजा का अधिकारी समझने लगा। परंतु भारत में उसका वो मान मर्दन हुआ जो कि उसकी मौत का कारण बना।

सिन्धु को पार करने के बाद भारत के तीन छोटे छोटे राज्य थे।

ताक्स्शिला जहाँ का राजा अम्भी था, पोरस, अम्भिसार ,जो की काश्मीर के चारो और फैला हुआ था। अम्भी का पुरु से पुराना बैर था,इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया। अम्भिसार ने भी तठस्त रहकर सिकंदर की राह छोड़ दी, परंतु भारतमाता के वीर पुत्र पुरु ने सिकंदर से दो-दो हाथ करने का निर्णय कर लिया। आगे के युद्ध का वर्णन में यूरोपीय इतिहासकारों के वर्णन को ध्यान में रखकर करूंगा। सिकंदर ने आम्भी की साहयता से सिन्धु पर एक स्थायी पुल का निर्माण कर लिया।
20,000 पैदल व 17000 घुड़सवार  सिकंदर की सेना पुरुकी सेना से बहुत अधिक थी, तथा सिकंदर की साहयता आम्भी की सेना ने भी की थी।”
कर्तियास लिखता है की, “सिकंदर झेलम के दूसरी और पड़ाव डाले हुए था। सिकंदर की सेना का एक भाग झेहलम नदी के एक द्वीप में पहुच गया। पुरु के सैनिक भी उस द्वीप में तैरकर पहुच गए। उन्होंने यूनानी सैनिको के अग्रिम दल पर हमला बोल दिया। अनेक यूनानी सैनिको को मार डाला गया। बचे कुचे सैनिक नदी में कूद गए और उसी में डूब गए। “
बाकि बची अपनी सेना के साथ सिकंदर रात में नावों के द्वारा हरनपुर से 60 किलोमीटर ऊपर की और पहुच गया। और वहीं से नदी को पार किया। वहीं पर भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में पुरु का बड़ा पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ।
एरियन लिखता है कि,”भारतीय युवराज ने अकेले ही सिकंदर के घेरे में घुसकर सिकंदर को घायल कर दिया और उसके घोडे ‘बुसे फेलास ‘को मार डाला।”
ये भी कहा जाता है की पुरु के हाथी दल-दल में फंस गए थे, पशुओं ने घोर आतंक भी पैदा कर दिया था। उनकी भीषण चीत्कार से सिकंदर के घोडे न केवल डर रहे थे बल्कि बिगड़कर भाग भी रहे थे। अनेको विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके। सिकंदर ने छोटे शास्त्रों से सुसज्जित सेना को हाथियों से निपटने की आज्ञा दी। इस आक्रमण से चिड़कर हाथियों ने सिकंदर की सेना को अपने पावों में कुचलना शुरू कर दिया।”
यह मजबूत कद वाला पशु यूनानी सैनिको को अपनी सूंड सेपकड़ लेता व अपने महावत को सोंप देता और वो उसका सर धड से तुंरत अलग कर देता। इसी प्रकार सारा दिन समाप्त हो जाता,और युद्ध चलता ही रहता। “हाथियों में अपार बल था, और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए। अपने पैरों के तले उन्होंने बहुत सारे यूनानी सैनिको को कुचल कर रख दिया।
कहा जाता है की पुरु ने अनाव्यशक रक्तपात रोकने के लिए सिकंदर को अकेले ही निपटने का प्रस्ताव दिया था। परन्तु सिकंदर ने भयातुर उस वीर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
इथोपियाई महाकाव्यों का संपादन करने वाले श्री E.A.W बैज लिखते है की,”जेहलम के युद्ध में सिकंदर की अश्व सेना का अधिकांश भाग मारा गया। सिकंदर ने अनुभव किया कि यदि में लडाई को आगे जारी रखूँगा, तो पूर्ण रूप से अपना नाश कर लूँगा। अतः उसने युद्ध बंद करने की पुरु से प्रार्थना की। भारतीय परम्परा के अनुसार पुरु ने शत्रु का वद्ध नही किया। इसके पश्चात संधि पर हस्ताक्षर हुए, और सिकंदर ने पुरु को अन्य प्रदेश जीतने में सहायता की”।

बिल्कुल साफ़ है की प्राचीन भारत की रक्षात्मक दिवार से टकराने के बाद सिकंदर का घमंड चूर हो चुका था। उसके सैनिक भी डरकर विद्रोह कर चुके थे। तब सिकंदर ने पुरु से वापस जाने की आज्ञा मांगी। पुरु ने सिकंदर को उस मार्ग से जाने को मना कर दिया जिससे वह आया था। और अपने प्रदेश से दक्खिन की और से जाने का मार्ग दिया।
जिन मार्गो से सिकंदर वापस जा रहा था, उसके सैनिको ने भूख के कारण राहगीरों को लूटना शुरू कर दिया।इसी लूट को भारतीय इतिहास में सिकंदर की दक्खिन की और की विजय लिख दिया। परंतु इसी वापसी में मालवी नामक एक छोटे से भारतीय गणराज्य ने सिकंदर की लूटपाट का विरोध किया। इस लडाई में सिकंदर बुरी तरह घायल हो गया।
प्लुतार्च लिखता है कि, “भारत में सबसे अधिक खुन्कार लड़ाकू जाती मलावी लोगो के द्वारा सिकंदर के टुकड़े टुकड़े होने ही वाले थे, उनकी तलवारे व भाले सिकंदर के कवचों को भेद गए थे। और सिकंदर को बुरी तरह से आहात कर दिया। शत्रु का एक तीर उसका बख्तर पार करके उसकी पसलियों में घुस गया। सिकंदर घुटनों के बल गिर गया। शत्रु उसका शीश उतारने ही वाले थे की प्युसेस्तास व लिम्नेयास आगे आए। किंतु उनमे से एक तो मार दिया गया तथा दूसरा बुरी तरह घायल हो गया।”
इसी भरी बाजार में सिकंदर की गर्दन पर एक लोहे की लाठी का प्रहार हुआ और सिकंदर अचेत हो गया। उसके अन्ग्रक्षक उसी अवस्था में सिकंदर को निकाल ले गए। भारत में सिकंदर का संघर्ष सिकंदर की मोत का कारण बन गया।
अपने देश वापस जाते हुए वह बेबीलोन में रुका। भारत विजय करने में उसका घमंड चूर चूर हो गया। इसी कारण वह अत्यधिक मद्यपान करने लगा,और ज्वर से पीड़ित हो गया। तथा कुछ दिन बाद उसी ज्वर ने उसकी जान ले ली।
स्पष्ट रूप से पता चलता है कि सिकंदर भारत के एक भी राज्य को नही जीत पाया । परंतू पुरु से इतनी मार खाने के बाद भी इतिहास में जोड़ दिया गया कि सिकंदर ने पुरु पर जीत हासिल की।भारत में भी महान राजा पुरु की जीत को पुरु की हार ही बताया जाता है।यूनान सिकंदर को महान कह सकता है लेकिन भारतीय इतिहास में सिकंदर को नही बल्कि उस पुरु को महान लिखना चाहिए जिन्होंने एक विदेशी आक्रान्ता का मानमर्दन किया।



सिकन्दर के पिता का नाम फिलीप था। 329 ई. पू. में अपनी पिता की मृत्यु के उपरान्त वह सम्राट बना। वह बड़ा शूरवीर और प्रतापी सम्राट था। वह विश्वविजयी बनना चाहता था। सिकन्दर ने सबसे पहले ग्रीक राज्यों को जीता और फिर वह एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) की तरफ बढ़ा। उस क्षेत्र पर उस समय फ़ारस का शासन था। फ़ारसी साम्राज्य मिस्र से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। फ़ारस के शाह दारा तृतीय को उसने तीन अलग-अलग युद्धों में पराजित किया। हँलांकि उसकी तथाकथित “विश्व-विजय” फ़ारस विजय से अधिक नहीं थी पर उसे शाह दारा के अलावा अन्य स्थानीय प्रांतपालों से भी युद्ध करना पड़ा था। मिस्र, बैक्ट्रिया, तथा आधुनिक ताज़िकिस्तान में स्थानीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। सिकन्दर भारतीय अभियान पर 327 ई. पू. में निकला। 326 ई. पू. में सिन्धु पार कर वह तक्षशिला पहुँचा। वहाँ के राजा आम्भी ने उसकी अधिनता स्वीकार कर ली। पश्चिमोत्तर प्रदेश के अनेक राजाओं ने तक्षशिला की देखा देखी आत्म समर्पण कर दिया। वहाँ से पौरव राज्य की तरफ बढ़ा जो झेलम और चेनाब नदी के बीच बसा हुआ था। युद्ध में पुरू पराजित हुआ परन्तु उसकी वीरता से प्रभावित होकर सिकन्दर ने उसे अपना मित्र बनाकर उसे उसका राज्य तथा कुछ नए इलाके दिए। यहाँ से वह व्यास नदी तक पहुँचा, परन्तु वहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा। उसके सैनिक मगध के नंद शासक की विशाल सेना का सामना करने को तैयार न थे। वापसी में उसे अनेक राज्यों (शिवि, क्षुद्रक, मालव इत्यादि) का भीषण प्रतिरोध सहना पड़ा। 325 ई. पू. में भारतभुमि छोड़कर सिकन्दर बेबीलोन चला गया। जहाँ उसकी मृत्यु हुई।

सिकंदर की मौत का इतिहास के सबसे आकर्षक चरित्रों में से एक है महान सिकंदर,  बचपन से विश्व विजेता बनने का ख्याब देखने वाले इस विजेता बनने का ख्वाब देखने वाले इस राजकुमार ने उसे पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा समय नहीं लगाया. मकदूनिया के राजा फिलिप के महल में 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व पैदा हुए सिकन्दर में अपना राज्य फैलाने ही गहरी लालसा थी। उसकी सैना उसे भगवान की तरह मानती थी। उसके सपने को पूरा करने के लिए यह सेना बरसो अपने घर से दूर, उसके साथ युद्ध अभियान पर लगी रही और एक दिन जब वह थक गई, तो सिकंदर को अपना आखिरी समय बाद ही उसकी मौत हो गई।  सिकंदर के जीवन के बारे में इतिहास में कई बाते दर्ज और उन पर कोई विवाद नहीं पर उसकी मौत को लेकर कभी एक राय नहीं बन पाई।
जिसके कारण हुए बुखार ने उसकी जान ले ली। कुछ इतिहासकार मानते है कि वह रोग मलेरिया था। कुछ का कहना है कि टाईफाइड सिकंदर के समय के कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उसकी मौत बुखार की वजह से हुई थी। जिस विषाणु के कारण उसकी मौत हुई थी, उसे नील नदी का विषाणु कहा जाता था। 

कुछ का कहना है कि सिकंदर को उसके विश्वासपात्रों ने जहर दे दिया था। उसके बचपन के दोस्त सिपहसालारो की बगावत के कारण सिकंदर हद से ज्यादा शक्की हो गया था। अत: उन्होंने शराब में जहर मिलकर दे दिया था।  सो उन्होंने जहर के कारण सिकंदर की तड़फ को बुखार की तड़प को नाम देते हुए नील नदी के विषाणुओ को दोषी ठहराया ज्यादातर अकादमिक इतिहासकारों का मानना है कि सिकंदर की मौत किसी बीमारी की वजह से हुई थी। 
जिस वक्त सिकंदर की मौत हुई, उस वक्त बेविलोन में मलेरिया और टाईफाइड जैसे रोग हुआ करते थे। बेबीलोन के शाही रोजनामचे से उसकी बीमारी के जो लक्षण मिले है, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि वह रोग टाईफाइड ही रहा होगा।
सिकंदर बहुत ही महत्वाकांक्षी ब्यक्ति था। उसकी माँ ओलिम्पस को उससे भी ज्यादा महत्वाकांक्षी माना जाता है।  ओलीम्पस को शक था कि फिलिप, जो उससे चिढ़ता था, सिकंदर को राजा नहीं बनाएगा। उसने 16 साल की उम्र में ही सिकंदर को कई महत्वपूर्ण अभियानों पर भेजा था।  फिलिप की भी हत्या हो गई, फिलिप की हत्या के बाद उसके विश्वासपात्रों ने एक बार उसे जहर देने की कोशिश की, लेकिन सिकंदर ने प्याले को सूंघकर समझ गया, दो बार उस पर युद्ध में तीर चलाया गया, पर सिकंदर बच गया। 
ये ऐसी बाते है, जिनके कारण दो हजार साल बाद भी इस धारणा को बल मिला हुआ है। कि दरबारियों ने सिकंदर की हत्या करवाई थी। मौत की वक्त जब पूछा गया कि वह अपना उत्तराधिकारी किसे बनाना चाहता है, तो जर्जर सिकंदर कुछ नहीं बोल पाया। सिकंदर की मौत के कुछ बरसों बाद उसके पुरे परिवार को ख़त्म कर दिया गया।


सिकंदर का भारत अभियान –



  • सिकंदर यूनान के मेसिडोनिया का शासक था और  उसके पिता का नाम फिलिप द्वितीय था।
  • सिकंदर विश्वविजय की महत्वाकांक्षा रखता था अपनी इस महत्वाकांक्षा को साकार करने के लिए उसने भारत पर 326-27 ई.पू. में भारत पर आक्रमण किया।
  • सिकंदर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत अनेक छोटे छोटे राज्योँ मेँ विभक्त था, जिसमे कुछ कुछ राजतंत्रात्मक तथा कुछ गणराज्य थे।
  • भारत मेँ सर्वप्रथम सिकंदर का सामना तक्षशिला के शासक अम्भी से हुआ। अम्भी ने शीघ्र ही समर्पण कर दिया और सिकंदर को सहायता का वचन दिया।
  • सिकंदर का भारत मेँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण युद्ध झेलम नदी के तट पर पुरु या पोरस के साथ हुआ जिसे पितस्ता का युद्ध कहा जाता है।
  • इस युद्ध को ‘हाइडेस्पेस का युद्ध’ भी कहा गया है। इस युद्ध में पोरस की हार हुई, लेकिन सिकंदर ने पोरस की बहादुरी से प्रभावित होकर उसका राज्य वापस कर दिया।
  • पोरस की हार के बाद सिकंदर ने ‘गलॅागनिकाय’ तथा कुछ जातियो को भी पराजित किया।
  • सिकंदर ने भारत मेँ दो नगरो की स्थापना की। पहला नगर ‘निकैया’ (विजय नगर) विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य मेँ तथा दूसरा अपने प्रिय घोड़े के नाम पर बुकफेला रखा।
  • सिकंदर की सेना ने व्यास नदी से आगे बढने से इंकार कर दिया। सिकंदर ने सैनिकोँ मेँ जोश भरने का पूरा प्रयत्न किया किन्तु उसे इस कार्य में सफलता नहीँ मिली।
  • सैनिकों के हठ के सामने सिकंदर अंततः सिकंदर को अपने भारत विजय के अभियान को रोकना पड़ा।
  • सिकंदर ने विजित भारतीय प्रदेशोँ को अपने सेनापति फिलिप को सौंप कर वापस लौटने का निर्णय किया। सिकंदर भारत मेँ 19 महीने रहा।
  • कहा जाता है की सिकंदर के लगातार युद्धों, घर परिवार की याद, भारत की गर्म जलवायु आदि ने उसकी सेना के हौसले पस्त कर दिए।
  • सिकंदर भारत के शक्तिशाली मगध साम्राज्य पर आक्रमण करना चाहता था। लेकिन जब उसकी सेना ने मगध की विशाल सेना के बारे मेँ सुना तो वह घबरा उठी।
  • सिकंदर ने भारत के आक्रमण के समय मगध एक शक्तिशाली राज्य था, जिस पर घनानंद नामक राजा का शासन था। घनानंद की सेना मेँ लगभग 6 लाख सैनिक थे।
  • अपने देश मेसिडोनिया लौटते समय लगभग 323 ई.पू. में बेबीलोन में सिकंदर का निधन हो गया।  

सिकंदर के अभियान से भारत पर क्या प्रभाव पड़ा-





  • सिकंदर की विश्व विजय की महत्वाकांक्षा ने उसे भारत विजय के लिए प्रेरित किया। इस प्रेरणा अथवा सिकंदर के भारत अभियान ने प्राचीन यूरोप को, प्राचीन भारत के निकट संपर्क मेँ आने का अवसर प्रदान किया।
  • सिकंदर के इस भारत अभियान का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था- भारत और यूनान के बीच विभिन्न क्षेत्रों मेँ प्रत्यक्ष संपर्क की स्थापना।
  • राय चौधरी के अनुसार सिकंदर के आक्रमण के परिणामस्वरूप भारत की छोटी छोटी रियासतें समाप्त हो गईं।
  • डॉ राधा कुमुद मुखर्जी के अनुसार सिकंदर के भारत पर आक्रमण से राजनीतिक एकीकरण को प्रोत्साहन मिला, जिससे छोटे राज्य बड़े राज्यों में विलीन हो गए।
  • कला के क्षेत्र में गांधार शैली का भारत मेँ विकास यूनानी प्रभाव का ही परिणाम है।
  • यूनानियों की मुद्रण निर्माण कला का प्रभाव भारतीय मुद्रा कला पर दृष्टिगत होता है। उलूक शैली के सिक्के इसके उदाहरण हैं।
  • व्यापार के क्षेत्र मेँ पश्चिम के देशो के साथ जल मार्गों का पता चला, जिनका कालांतर में व्यापार पर अनुकूल प्रभाव पड़ा।
  • ईसा पूर्व 326 में मकदूनिया का राजा सिकंदर मध्य पूर्व के अनेक राज्यों को जीतता हुआ 326  ई पू में भारत की सीमा पर पहुंचा
  • गांधार के राजा आम्भी ने सिकंदर का स्वागत किया
  • किन्तु चिनाब और झेलम के मध्य राज्य करने वाले राजा पुरु ने युद्ध करना की चुनौती स्वीकार की I झेलम नदी के किनारे महाराजा पुरु और सिकंदर की सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ .परिणाम इस प्रकार रहे …
  • सिकंदर ,महाराज पुरु की वीरता से प्रभावित होकर उसे मित्र बना लिया .
  • सिकंदर ने पुरु का राज्य उसे लौटा दिया
  • अपने राज्य का कुछ भाग भी पुरु को दे दिया
  • सिकंदर की सेना का मनोबल भी इस युद्ध के बाद टूट गया था और उन्होंने नए अभियान के लिए आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था
  • सेना में विद्रोह की स्थिति पैदा हो रही थी इसलिए सिकंदर ने वापस जाने का फैसला किया
  • सेना को प्रतिरोध से बचने के लिए नए रास्ते से वापस भेजा और खुद सिन्धु नदी के रास्ते गया ,जो छोटा व सुरक्षित था
  • रास्ते में मालव जन जातियों ने सिकंदर पर आक्रमण कर उसे घायल कर दिया
  • सिकंदर अपने देश जाते हुए रास्ते में ही मर गया उसके साथियों ने अपने देश पहुच कर लिख दिया कि सिकंदर ने पुरु पर विजय पाई थी
  • यदि सिकंदर पुरु से जीता होता तो न तो वह पुरु का राज्य लौटाता , न अपने राज्य का भाग उसे लौटाता ….,सेना का मनोबल टूटना ,नए अभियान से इंकार ,विद्रोह कि स्थिति हार के बाद ही पैदा होती हैं न कि जीत के बाद
    पुरु से जीतकर और उसका मित्र बनकर वह वापसी में सुरक्षित वापस जा सकता था
  • निष्कर्ष यह है कि सिकंदर महाराज पुरु से हारा था सेना बिखर गयी थी कुछ सेना के साथ सिकंदर भी भागा.सिन्धु नदी के रास्ते समुद्र में पहुँच कर
  • सुरक्षित हो जाना चाहता था पर भागते हुए को मालव राज्य ने मारा और घायल कर दिया ,अंततः रास्ते मे ही मर गया !
  • इस प्रकार महान भारत के महाराजा पुरु महान हुए न कि सिकंदर !


कुछ साल पहले ब्रिटिश हिस्ट्री में एक लेख छपा था


जिसके मुताबिक, भारत से सिकंदर कुछ बन्दर ले गया था. और उन्ही में से एक ने उसे काट लिया था, जिससे उसकी मौत हुई। उस लेख पर कई  ने सवालिया निशान लगाया है। सिकंदर की मौत की गुत्थी कभी नहीं सुलझाई जा सकती। कई विद्धानो ने लम्बे अध्ययन के बाद उसे बीमारी से हुई मौत मान लिया है।




सच्चाई जाँचने का कोई तरीका नहीं बचा




33 साल की उम्र में जब सिकंदर मरा, तो उसकी दौनो बाहें फैली हुई थी, और हथेलियाँ खुली हुई, दार्शनिकों ने इसे मृत्यु के आह्वान से जोड़ा और कहाँ इस राजा से सारी उम्र जमीने जीती, पर गया तो इसके हाथ खाली थे, हर इंसान की तरह सिकंदर भी खाली हाथ ही गया, पर अपने जाने का कारण अपनी धडकनों के साथ ले गया। हम बचपन से ही महान सिकंदर का नाम तो सुनते आ रहे है। उसके बहादुरी के किस्से भी स्कूलों मे कई बार पढाएं गए। स्कूलों मे बताया गया कि सिकंदर विश्व विजेता बनने की चाहत रखता था, जिसके लिए उसने अपने आसपास के सभी विद्रोहिओं को खत्म करना भी शुरू कर दिया। सिकंदर के बारे मे बताया जाता है कि वो बेहद क्रूर और खतरनाक शाशक था।
सिकंदर को अपनी जीत का घमंड होने लगा था। उसे लगता की था कि वो अमर योद्धा बन जाएगा यानि कभी उसकी मृत्यु नहीं होगी और ज्यादा जीने की चाह ने सिकंदर को भारत की ओर आने पर मजबूर कर दिया।
दरअसल सिकंदर को लगता था कि  भारत मे किसी ठिकाने पर अमृत मिलता है, जिसे पीकर वो अमर हो जाएगा और विश्वविजेता बनने का उसका सपना पूरा हो जाएगा। लेकिन, महान सिकंदर के बारे मे क्या आप ऐसे तथ्य जानते है, जो हैरान करने वाले है और उसे सुनकर आपको भी ये मानना ही पड़ेगा कि मृत्यु एक सत्य है और इससे कोई नहीं भाग सकता।

वो तथ्य क्या है





आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि मौत को हराने का दावा करने वाले  महान सिकंदर मरने से पहले मौत से डर गए थे। सिकंदर को पता चल गया था कि जीत, धन दौलत, अहंकार, घमंड सिर्फ एक झूट है, जबकि सत्य सिर्फ मृत्यु है।  इसलिए महान सिकंदर ने दुनिया को संदेश देने के उद्देश्य से अपनी इच्छाएं जाहिर की थी। सिकंदर ने अपने महामंत्री को ये आदेश दिया था कि मरने के बाद सिकंदर की तीन इच्छाएं जरुर पुरी की जानी चाहिए।

!!..महान सिकंदर की तीन इच्छाएं जो की अटल सत्य है..!!


1 . जिन हकीमो ने मेरा इलाज किया, वे सारे मेरे जनाज़े को कंधा देंगे, ताकि दुनिया को पता चल सके कि रोग का इलाज करने वाले हकीम भी मौत को नहीं हरा सकते।
2 . जनाज़े की राह मे वो सारी दौलत बिछा दी जाए जो उसने ज़िन्दगी भर इकट्ठा की थी. ताकि सबको ये पता चले कि जब मौत आती है तो ये दौलत भी काम नहीं आती। 
3 . महान सिकंदर का जनाज़ा जब निकाला जाए तो उसके दोनों  हथेली बाहर की ओर लटकाएं जाए, ताकि लोगो को पता चले कि इंसान धरती पर खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है। 

अमर होने का ख्वाब रखने वाले सिकंदर ने कैसे माना मौत को सत्य
सिकंदर ने अपने पिता के मृत्यु के बाद अपने सौतेले और चचेरे भाइयो का कत्ल करके मेसेडोनिया के सिहांसन को हथिया लिया। विश्वविजेता बनने के ख्वाब को पूरा करने के लिए उसने इरान पर आक्रमण किया। इरान को जितने के बाद गोर्दियास को जीता। गोर्दियास को जीतने के बाद टायर को नष्ट कर दिया। सिकंदर इतना क्रूर था कि बेबीलोन को जीत कर पुरे राज्य मे आग लगवा दी और फिर अफगानिस्तान को रौंदता हुआ भारत के सिन्धु नदी तक चढ़ आया। 

मृत्यु से पहले महान सिकंदर को एक संत ने बहुत ही सरल शब्दों जीवन की असलियत को बताया है-



सिकंदर को लगता था कि भारत मे कही कोई ऐसी जडीबुटी मिलती है, जिसे लेकर भारत के लोगो की आयु बढ़ जाती है, कार्तियास लिखता है कि सिकंदर जब अपने दल के साथ आगे बढ़ा तो उसने देखा कि एक साधू योग मे खोया हुआ है। 
सिकंदर ने उस साधू को आवाज लगाकर कहा : -“ऐ साधू, मुझे बताओ कि वो जडीबुटी कहा मिलती है, जिसे पीकर तुम लोग अमर हो जाते हो. तुम्हें जितनी भी दौलत चाहिए मैं दूंगा….”
सिकंदर की बातें सुनकर साधू मुस्कुराया और कहा: -“मै नहीं जानता कि तुम कौन हो और कहा से आये हो, पर मै इतना जान गया हु कि तुम एक घमंडी और मुर्ख योद्धा हो…”
साधू ने सिकंदर से कहा : -“मानलो तुम्हे बहोत प्यास लगी है और तुम रेगिस्तान मे खड़े हो. तुम्हारे पास पानी की एक भी बूंद नहीं है. ऐसे मे एक ग्लास पानी पीने के लिए तुम मुझे अपना क्या दे सकते हो?”
सिकंदर ने कहा : -“पानी के लिए मै अपना आधा धन दौलत दे सकता हूं.”
साधू बोले :-“मै फिर भी ना मानु तो?”
सिकंदर ने कहा :-“फिर मै अपनी सारी दौलत, सारे राज्य, सारे महल, आपको दे दुंगा पर पानी के बगैर नहीं रह पाउंगा.”
सिकंदर की इस बात पर साधू हंसे और बोले;- “ज़िन्दगी भर इक्कठी की हुई दौलत की तुलना मे एक ग्लास पानी की कीमत अमूल्य है तुम्हारी नजरो मे… तो तुम ये क्यों नहीं मानते कि तुम जिस चाह मे (विश्वविजेता कि चाह) दुनिया भर मे भ्रमण कर रहे हो वो सब व्यर्थ है. जीवन की सच्चाई सिर्फ मृत्यु है. जो इस धरती पर आया है, उसे जाना ही है. तुमने अपनी ज़िन्दगी मे सिर्फ दुसरो कि आह ही कमाई है, इसलिए तुम्हे नर्क मे जाना होगा” ..


साधू ने सिकंदर को ये भी जता दिया कि उसकी मौत जल्द ही हो जायेगी। और… 20 जुलाई 356 ई. पू. के दीन जन्मे महान सिकंदर की मौत 33 साल के उम्र मे ही हो गई। कहा जाता है कि सिकंदर को थ्रोट केंसर  नामक बीमारी ने जकड लिया था, जिसका सही इलाज हकीमो के पास नहीं था इसलिए इस दुनिया से सिकंदर ने अलविदा कह दिया।


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